मेरे विचार
मैं उस परमपिता परमात्मा और अपनी कुलदेवी नागणेचिया को शीश झुका कर नमन करता हूँ।
मैने धरती पर मानव बनकर जन्म लिया यह कुदरत की मेहरबानी और मेरी खुशकिस्मत हूँ।
दोस्तो, आज मैं अपने जीवन के 42 वे पायदान पर पहुँच गया हूँ। आज मैं मस्तिष्क से थोड़ा लेश मात्र परिपक्व हुआ हूँ। जिसका मैने दुनिया मे रहकर दुनिया के थपेड़ों व गिरने और उठने से लेकर आज तक के निर्णय में पाया हैं।
मेरा जिन्दागी से कोई शिकवा नही। न ही कोई नकारात्मक सोच है। की ऊपर वाले ने मुझे दुख भरी जिन्दागी दी या सुख नही दिया।
मेरा मानना हैं। कि सुख और दुख हमारी लालसा और इच्छा में हैं। जिसका कारण हैं। स्वयं के लिए दुख।
मैं आज अपने काम को महत्व देता हूँ। तो मेरी महत्वता मानवता के लिए हैं। न कि अपने लिए। आज अगर आप कोई कदम या अविष्कार करते हैं। तो उसका फायदा दुनिया को मिलना चाहिए। न कि स्वयं का फायदा या सिर्फ अपने परिवार का फायदा ही मान्य हो।
दोस्तो आज कलयुग या जो वर्तमान समय चल रहा हैं। उसमें सिर्फ मानव शरीर से मानव हैं। लेकिन अंदर से जानवर हैं। कारण आज मानव सिर्फ और सिर्फ अपना और अपने परिवार के जीवन को सफल और खुशहाल बनाने के लिए मैं और सिर्फ मेरा के बारे में सोचता हैं।
आज मानवता के लिए बिना स्वार्थ और मतलब के परोपकार और आने वाली पीढ़ियों के लिए कोई अविष्कार नही हो रहा हैं। जो कुछ भी हो रहा हैं। आज मजा कैसे ले उसके बारे में हो रहा हैं।
पहले के समय सतयुग में किसी भी कार्य को करने का कारण सिर्फ और सिर्फ मानवता और परोपकार के लिए होता था। न की स्वयं के लिए।
आज हम जिन जिन सेवाओ का प्रयोग कर रहे हैं। उनका अविष्कार सिर्फ और सिर्फ इस सृष्टि के सफलतम आयाम को और आने वाली पीढ़ियों को सोच कर और आने वाली पीढ़ियों के उच्चतम जीवन को जीने के लिए बनाया।
अगर दुनिया मे शांति और सकून और सतयुग चाहिए तो सिर्फ और सिर्फ अपने से ध्यान हटाकर दुसरो के लिए जीवन जिये आप पाएंगे कि कोई अन्य भी आपके बारे में सोच रहा हैं।
मैं उस परमपिता परमात्मा और अपनी कुलदेवी नागणेचिया को शीश झुका कर नमन करता हूँ।
मैने धरती पर मानव बनकर जन्म लिया यह कुदरत की मेहरबानी और मेरी खुशकिस्मत हूँ।
दोस्तो, आज मैं अपने जीवन के 42 वे पायदान पर पहुँच गया हूँ। आज मैं मस्तिष्क से थोड़ा लेश मात्र परिपक्व हुआ हूँ। जिसका मैने दुनिया मे रहकर दुनिया के थपेड़ों व गिरने और उठने से लेकर आज तक के निर्णय में पाया हैं।
मेरा जिन्दागी से कोई शिकवा नही। न ही कोई नकारात्मक सोच है। की ऊपर वाले ने मुझे दुख भरी जिन्दागी दी या सुख नही दिया।
मेरा मानना हैं। कि सुख और दुख हमारी लालसा और इच्छा में हैं। जिसका कारण हैं। स्वयं के लिए दुख।
मैं आज अपने काम को महत्व देता हूँ। तो मेरी महत्वता मानवता के लिए हैं। न कि अपने लिए। आज अगर आप कोई कदम या अविष्कार करते हैं। तो उसका फायदा दुनिया को मिलना चाहिए। न कि स्वयं का फायदा या सिर्फ अपने परिवार का फायदा ही मान्य हो।
दोस्तो आज कलयुग या जो वर्तमान समय चल रहा हैं। उसमें सिर्फ मानव शरीर से मानव हैं। लेकिन अंदर से जानवर हैं। कारण आज मानव सिर्फ और सिर्फ अपना और अपने परिवार के जीवन को सफल और खुशहाल बनाने के लिए मैं और सिर्फ मेरा के बारे में सोचता हैं।
आज मानवता के लिए बिना स्वार्थ और मतलब के परोपकार और आने वाली पीढ़ियों के लिए कोई अविष्कार नही हो रहा हैं। जो कुछ भी हो रहा हैं। आज मजा कैसे ले उसके बारे में हो रहा हैं।
पहले के समय सतयुग में किसी भी कार्य को करने का कारण सिर्फ और सिर्फ मानवता और परोपकार के लिए होता था। न की स्वयं के लिए।
आज हम जिन जिन सेवाओ का प्रयोग कर रहे हैं। उनका अविष्कार सिर्फ और सिर्फ इस सृष्टि के सफलतम आयाम को और आने वाली पीढ़ियों को सोच कर और आने वाली पीढ़ियों के उच्चतम जीवन को जीने के लिए बनाया।
अगर दुनिया मे शांति और सकून और सतयुग चाहिए तो सिर्फ और सिर्फ अपने से ध्यान हटाकर दुसरो के लिए जीवन जिये आप पाएंगे कि कोई अन्य भी आपके बारे में सोच रहा हैं।
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